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कविगुरु रविंद्रनाथ ठाकुर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 7 मई 1816 को कोलकाता में हुआ । उनके पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर और उनकी माता का नाम शारदा देवी था । एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे टैगोर ने महज 8 साल की उम्र में कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था ।उनकी पहली कविता संग्रह मात्र 16 साल की उम्र में प्रकाशित हुई थी ।
विश्व विख्यात महाकाव्या गीतांजलि की रचना के लिए उन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वह मात्र पहले भारतीय थे । साथ में वह दुनिया के ऐसे कवि हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान है ।
1- भारत का राष्ट्रगान "जन गण मन"
2- बांग्लादेश का राष्ट्रगान "आमार सोनार बांग्ला"
साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विधा है, जिनमें उनके रचना ना हो गान, कविता , नाटक , उपन्यास , शिल्पकला सभी विधाओं मे उनकी रचना विश्वविख्यात है । उनकी रचनाओं में गीतांजलि, गीताली, कथा ओ कहानी, शिशु,चोखेर बाली, गोरा, घरे बाइरे, काबुलीवाला, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं।
रविंद्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊपर रखते थे । गुरुदेव ने कहा था "जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा ।"
7 अगस्त 1941 में उन्होंने कोलकाता में अपनी अंतिम सांस ली ।
1- चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलता हैं परंतु अपना कलंक हमेशा अपने पास रखता है ।
2- जब मैं खुद हंसता हूं तो मेरे ऊपर से मेरा बोझ कम हो जाता है ।
3- खड़े होकर पानी देखने से आप समंदर पार नहीं कर सकते ।
4- यदि आप सभी गलतियों के लिए सारे दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जाएगा ।
5- जिस तरह घोसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है ।
6- तथ्य कहीं है, लेकिन सच एक ही है।
7- जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप से नहीं कह सकता, उसी को सबसे अधिक क्रोध आता है ।
8- मित्रता की गहराई परिचय की लंबाई पर निर्भर नहीं करती ।
9- जो कुछ हमारा है वो हम तक तभी पहुंचता है जब हम उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करते हैं ।
10- वे लोग जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त होते हैं, स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाते ।
11- बर्तन में रखा पानी हमेशा चमकता है, और समुद्र का पानी हमेशा गहरे रंग का होता है, लघु सत्य के शब्द हमेशा स्पष्ठ होते हैं, महान सत्य मौन रहता है ।
जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता ।
पंजाब-सिन्धु-गुजरात-मराठा
द्राविड़-उत्कल-बंग ।
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग ।
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे
गाहे तव जय-गाथा ।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता ।
जय हे, जय हे, जय हे, जय ! जय ! जय ! जय हे ।
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