एनडीआरएफ (NDRF)

बंकिमचद्र चट्टोपाध्याय भारत के प्रख्यात उपन्यासकार , कवि और पत्रकार थे । बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून 1838 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई । और 1869 में कानून की डिग्री हासिल की इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली । बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की शादी महज 11 वर्ष की आयु में ही हो गई थी । किताबों के प्रति बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की रूचि बचपन से ही थी । चटर्जी ने अपना पहला बंगला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी 1865 में लिखा था तब वह महज 27 साल के थे । उनकी अगली रचनाएं 1866 में कपालकुंडला, 1869 में ,1877 में रजनी, 1877 में चंद्रशेखर, 1884 में देवी चौधुरानी लिखी थी । बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1872 में मासिक पत्रिका बंगदर्शन का भी प्रकाशन किया । बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा 1874 में लिखा गया एक अमर गीत वंदे मातरम् भारतीय स्वाधीनता संग्राम का मुख्य उपदेश बना और साथ में आज देश का राष्ट्रगीत भी है । वंदे मातरम् सिर्फ एक गीत या नारा ही नहीं है बल्कि आजादी की एक संपूर्ण संघर्ष गाथा है जो 1874 से लगातार आज भी करोड़ों भारतीय दिलों में धड़क रहा है ।
वंदे मातरम् राष्ट्रगीत की खूबसूरत धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी । वंदे मातरम् गीत को सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में नोबल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाया गया था । 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने ऐलान किया कि वंदे मातरम् को भारतीय राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया जा रहा है । आनंदमठ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास था जो 1882 में प्रकाशित हुआ जिससे प्रसिद्ध गीत वंदे मातरम् लिया गया है । बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का अंतिम उपन्यास सीताराम है । बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों में शायद बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे ।
8 अप्रैल 1894 को मात्र 56 वर्ष की आयु में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया ।
वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलाम्
मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलाम्
मातरम्।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्॥ 1॥
कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले।
बहुबलधारिणीं
नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं
मातरम्॥ 2 ॥
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ 3 ॥
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी,
नमामि त्वाम्
नमामि कमलाम्
अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलाम्
मातरम्॥ 4 ॥
वन्दे मातरम्
श्यामलाम् सरलाम्
सुस्मिताम् भूषिताम्
धरणीं भरणीं
मातरम्॥ 5 ॥
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें